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वो मेरी कहानी है,इंतजार कब तक करायेगी तू। ख्वाबो तक ही रहेगी,हकीकत भी हो पायेगी तू।। उम्र कुछ बची है,सूरज देखूँ इसकी कोई खबर नही। नज़्म लिखे है,आज नही तो कल क्या सुन पायेगी तू।। मेरे घर की खिड़कियाँ भी,तड़फ रही है। हो सके तो वो,शामों के पलो को दोहरायेगी तू।। घर का है वो दिया जो, अब बुझ-बुझ जाता है। उसे भी इंतजार है,अपने आँचल से छुपायेगी तू।। अब तो वो अल्फाज भी,कड़वे से लगते है। आरजू है अपने हाथो से प्यार का जाम पिलायेगी तू।।                                                           - अंकित जैन
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      ___________  एक पेड़ की मैं छाव   ___________ एक पेड़ की मैं छाव हूँ, उसके उपकारों का मैं बजूद हूँ, रातो में अक्स भी गिरते रहे, वो कह रहा है,यादो का सैलाब हूँ। मन्नतो का कोई हिसाब नही, नाम उसका हूँ इतना मैं आसान नही, मैं खुद एक स्वाभि मानी कि ढाल हूँ,, कोई राह का पेड़ नही। छाव मेरी मुक्त्त है, जड़े मेरी साथ है, कष्ठ है,धूप है,झमा-झम बारिश है , तभी सुगंधित फूलों का बास है। खुद मैं उम्मीद की एक आश है, खुद मैं एक जुनून है, हाथ फैलाने का कोई उद्देश्य नही, हम खुद सूर्य के एक बंश है।                                                              -  अंकित जैन
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   _________ये रातो में चमकती ये बिजलियाँ_________ Meanings● ("दमन = आत्मनियंत्रण, अज़ल = अनन्तकाल, अस्क़ाम = बुराइयां,  अस्बाब = वजह,  अश्क = आँशू इक़्तिज़ा = चाह, इख्लास = प्रेम,") ये रातो में चमकती ये बिजलियाँ मेरे दिल से उतरती है कुछ खामोशियाँ में खुदा से मिलाता हूँ अपना दमन गर रही उसकी रहमत तो होता अज़ल ये रातो में चमकती ये बिजलियाँ मेरे दिल से उतरती है कुछ खामोशियाँ में तारों से कहदू की तू चमकता रहे अपनी रोशनी से हमको उठाया करे में मानता हूँ है मुझ में कुछ अस्क़ाम पर कभी कभी तो बताया कर उसका अस्बाब ये रातो में चमकती ये बिजलियाँ मेरे दिल से उतरती है कुछ खामोशियाँ ये अश्क है तेरे इन्हें धरती से मिलाया न कर धरती भी भीग जाती है अब तू अश्क को गिराया न कर इक़्तिज़ा है मुझे तेरी,इस पर तु इतराया न कर कभी कभी तू भी अपना इख्लास दिखाया कर ये रातो में चमकती ये बिजलियाँ मेरे दिल से उतरती है कुछ खामोशियाँ                                                            - अंकित जैन
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    ____________में खुद एक अखबार हूँ।___________ में खुद एक अखाबार हूँ, छपने का में खुद एक इंतजार हूँ, रातो के ख्वाबो का,में खुद अपना एक यार हूँ, करता नही बात में दुसरो की,में खुद एक अखबार हूँ। दाम नही,कोई काम नही फिर एक नाम हूँ, बगुला कभी में बना नही,में खुद एक अपनी चाल हूँ। आँखों मे अश्क है,फिर भी जुनून के साथ हूँ, में डरु भी क्यों,जब बाबा के अपने साथ हूँ, अब क्लेश भी क्यों करू,जब में खुद एक अखबार हूँ। में क्या लिखूं,में क्या छपू,जब में खुद एक किताब हूँ, कहने को कुछ नहीं,फिर भी में रददियो का भाव हूँ, अब में खुद एक अखबार हूँ।                                                             -अंकित जैन
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       ________________एक वक़्त_______________ वो एक वक़्त है जो हर पल गुजरेगा सही, राह चलते टोकियेगा नही।। वो एक मन अजनबी मुसाफिर सा सही, राहो में कांटे डालियेगा नही।। है इसकी अम्बर समान हसरते ही सही, पर इस मन को कभी दुखाईयेगा नही।। वो एक बूँद बूँद का है रक्त ही सही, है इसकी समुद्र जैसी मुश्किलें को बढ़ाईयेगा नही।।                                                              ~अंकित जैन
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 _______________मेरी माँ की दुआ________________ मेरी माँ की दुआ क्या सदाबहार है। दुआ उसकी है या कोई भगवान है।। जब मुकम्मल नही,तो एक छूटी गजल है। वो कोई और नही,मेरी माँ एक कमल है।। वो मेरा नाराज होना फिर भी वो अनजान है। मेरी माँ का खुश होने की एक दांस्तान है।। वो मेरे रातो के ख्वाब का सच होंना,अकेला मेरा नही। वो एक माँ और बेटे के प्यार का अपना इजहार है।।                                                        ~अंकित जैन   
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    _____________ खामोशी-ए-चेहरे _______________ अब कुछ मुकम्मल होने की चाह नही है, पिला दिया है जाम-ए-मुहब्बत उसने।। वो होली के रंग उड़ा दिए उसने, हाथ भी छोड़ दिया राहो में कभी उसने।। अब तुफानो का भी असर नही होता है, रख ली है खामोशी-ए-चेहरे पे उसने।। राजी था दोनो का बिछड़ना साथ, राहे बदल ली अपनी किसी और के साथ उसने।।                                                               ~अंकित जैन