____________में खुद एक अखबार हूँ।___________ में खुद एक अखाबार हूँ, छपने का में खुद एक इंतजार हूँ, रातो के ख्वाबो का,में खुद अपना एक यार हूँ, करता नही बात में दुसरो की,में खुद एक अखबार हूँ। दाम नही,कोई काम नही फिर एक नाम हूँ, बगुला कभी में बना नही,में खुद एक अपनी चाल हूँ। आँखों मे अश्क है,फिर भी जुनून के साथ हूँ, में डरु भी क्यों,जब बाबा के अपने साथ हूँ, अब क्लेश भी क्यों करू,जब में खुद एक अखबार हूँ। में क्या लिखूं,में क्या छपू,जब में खुद एक किताब हूँ, कहने को कुछ नहीं,फिर भी में रददियो का भाव हूँ, अब में खुद एक अखबार हूँ। -अंकित जैन
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Showing posts from September, 2018
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________________एक वक़्त_______________ वो एक वक़्त है जो हर पल गुजरेगा सही, राह चलते टोकियेगा नही।। वो एक मन अजनबी मुसाफिर सा सही, राहो में कांटे डालियेगा नही।। है इसकी अम्बर समान हसरते ही सही, पर इस मन को कभी दुखाईयेगा नही।। वो एक बूँद बूँद का है रक्त ही सही, है इसकी समुद्र जैसी मुश्किलें को बढ़ाईयेगा नही।। ~अंकित जैन
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_______________मेरी माँ की दुआ________________ मेरी माँ की दुआ क्या सदाबहार है। दुआ उसकी है या कोई भगवान है।। जब मुकम्मल नही,तो एक छूटी गजल है। वो कोई और नही,मेरी माँ एक कमल है।। वो मेरा नाराज होना फिर भी वो अनजान है। मेरी माँ का खुश होने की एक दांस्तान है।। वो मेरे रातो के ख्वाब का सच होंना,अकेला मेरा नही। वो एक माँ और बेटे के प्यार का अपना इजहार है।। ~अंकित जैन
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_____________ खामोशी-ए-चेहरे _______________ अब कुछ मुकम्मल होने की चाह नही है, पिला दिया है जाम-ए-मुहब्बत उसने।। वो होली के रंग उड़ा दिए उसने, हाथ भी छोड़ दिया राहो में कभी उसने।। अब तुफानो का भी असर नही होता है, रख ली है खामोशी-ए-चेहरे पे उसने।। राजी था दोनो का बिछड़ना साथ, राहे बदल ली अपनी किसी और के साथ उसने।। ~अंकित जैन
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______________ कमाल तो देखो ______________ Meanings.. (ना-तजरबा-कारी- unexperienced ता-उम्र-life time तिरगीं- Darkness चिह्नित-write) ये मेरा और हवाओ का साथ तो देखो, मुझे पूरा बंजर ही कर दिया इनका काम तो देखो। मेरा ना-तजरबा-कारी का कोई बजूद था, फिर भी मुझे बदनाम करने का एहसान तो देखो। घनघोर राहो पर मुकम्मल था ना कोई, इनका ता-उम्र साथ रहने का इरादा तो देखो। में तो सिर्फ अपनी दास्तान चिह्नित कर रहा था, उस तिरगीं स्याही का कमाल तो देखो। ~ अंकित जैन
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_____________ मुकम्मल कर लूँगा______________ (स्र्झान--interest) मैं अपने लिए जमीन से भी पानी निकाल लूँगा, तुम्हे खबर भी नही होगी,में अपने अल्फाज़ बया कर लूँगा।। में तुमसे दस्तक-ए-मदद भी नही लूँगा, अपनी जीत हासिल-ए-खुद कर लूँगा।। तुम बात करते हो ,उन बीते हुए साथ लम्हो की, तेरी हर एक याद को अपना फाँसला बना लूँगा।। गर तू कभी मुझ में एक बार स्र्झान दिखा दे, तेरे हर एक लब्ज को मुकम्मल कर लूँगा।। ~ अंकित जैन