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Showing posts from July, 2018
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     _____________ अब वो सुबह_______________ "अब वो सुबह नहीं होती जिस में ऊपर वाले का नाम हो, अब वो घर से निकलते वो बात नहीं होती जिस में अपनो का आशीर्वाद हो, अब वो दिन नहीं होता जिस में भाई भाई का प्यार हो, अब कम्बक्त वो एक याद जरूर रहती है जिस में तुम्हे मेरी ओर मुझे तेरी जरूरत हो..!"                                                          "अंकित जैन"
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      ______________सिर्फ-दौलत________________ "सोए नहीं फिर भी सपने देखे है,  हमने भी अपनो के घर उजड़ते देखे है,  कभी जिनका साया हुआ करता था हम पर,  अब इन आँखों से ही उस साया का उठते देखे है,  माँ-बाप अपनी औलाद को कितना भी अच्छा कर ले,  हम ने उन्ही माँ-बाप को ब्रद्ध- आ श्रम में देखे है,  हम अपनो के लिए कितना भी अच्छा करले,  सिर्फ  दौलत के खातिर हांथो में खंजर ही देखे है..!"                                                         "अंकित जैन"
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    ______________ अरमानों के साथ____________ _ "काली घनघोर अंधेरी रात,  बहती नदी छूटता अपनो का साथ,  नई सुबह सूरज के साथ,  चल दिया हूँ मंजिलो के पास,  चलता है संसार दुआओं के साथ,  आये है सब खाली हाथ,  शब्दों का खेल अपनो के साथ,  खेलता है यहाँ  हर एक इंसान,  पंछियो का गीत,रातो की बहार,  यही तो है यहाँ का रीति रिबाज़,  ये जहान चलता है जमानो के साथ,  और हम चलते है अरमानो के साथ..!"                                                             "अंकित जैन"
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       _____________ आसमान के परिंदे____________ "आसमान के परिंदे आज जमीन पर उतार आए है,  पता नहीं अब किस का फरमान लाए है,  जब अपने सब महफूज है,  तो फिर ये फरमान किस का लाए है,  अपनों से तो मदद की जाती नहीं है,  और सपने अपनो के दिखा लाए है ,  बो तो बस खुदा की है खुदाई,  की ये सपने हकीकत में ना दिखाई..!"                                                           "अंकित जैन"