______________सिर्फ-दौलत________________



"सोए नहीं फिर भी सपने देखे है,
 हमने भी अपनो के घर उजड़ते देखे है,
 कभी जिनका साया हुआ करता था हम पर,
 अब इन आँखों से ही उस साया का उठते देखे है,
 माँ-बाप अपनी औलाद को कितना भी अच्छा कर ले,
 हम ने उन्ही माँ-बाप को ब्रद्ध-श्रम में देखे है,
 हम अपनो के लिए कितना भी अच्छा करले,
 सिर्फ दौलत के खातिर हांथो में खंजर ही देखे है..!"


                                                        "अंकित जैन"

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